रविवार, 19 फ़रवरी 2012

कोल्ड ड्रिंक्स ने दी किसानों को राहत


Farm-अब जबकि साफ हो गया है कि शीतल पेय पदार्थ यानि कोल्ड ड्रिंक्स यानि कोला उत्पाद हमारे शरीर लिए घातक हैं, छत्तीसगढ़ के किसानों ने इसका अनोखा गुण ढूंढ लिया है। उन्होंने पेप्सी और कोला जैसे कोल्ड ड्रिंक्स का इस्तेमाल कीटनाशक के तौर पर करना शुरू कर दिया है।

किसान कहते हैं कि यह अन्य कीटनाशकों से सस्ता और बहुत प्रभावशाली है। इस साल छत्तीसगढ़ के दुर्ग, राजनंद गांव और धमतरी जिलों के किसानों ने धान की फसल में लगे कीड़ों से छुटकारा पाने के लिए कीटनाशकों की जगह पेप्सी और कोका कोला का इस्तेमाल किया है। उनका दावा है कि जिन कीड़ों पर किसी भी कीटनाशक का कोई असर नहीं होता वे भी इन कोला उत्पादों के इस्तेमाल से मर जाते हैं।

लगभग दस गुना महंगे कीटनाशक की तुलना में कोल्ड ड्रिंक्स का इस्तेमाल किसानों के बीच इतना लोकप्रिय हो रहा है कि गांव-गांव में ये कोल्ड ड्रिंक्स पान की, चाय की दुकानों पर आसानी से मिल जाते हैं। हालांकि वे पहले भी बिकते थे लेकिन अब बहुत छोटी जगहों में भी ये आसानी से उपलब्ध हैं।

इससे पहले धान में लगने वाले तनाछेदक, महू और चितरी जैसी बीमारियों से फसल को बचाने के लिए गांव के लोग फोरेट, मेटासीड, डेमोक्रान, फरसा जैसे कीटनाशकों का इस्तेमाल करते थे लेकिन अब तो ज्यादातर लोगों की जुबान पर केवल पेप्सी और कोक का नाम है।

किसान बताते हैं कि फोरेट के एक पैकेट की कीमत 50 रू. के आस-पास पड़ती है जिसे यूरिया जैसे रासायनिक खाद में मिलाकर छिड़कना पड़ता था। इससे प्रति एकड़ 70 रू. की लागत आती थी लेकिन 10 रूपये में मिलने वाली कोल्ड ड्रिंक्स की दो छोटी बोतल एक एकड़ के लिए पर्याप्त होती है। किसान खुश हैं कि कीटनाशक की जगह पेप्सी, कोक के इस्तेमाल से उनकी फसल तो बच ही रही है, प्रति एकड़ 55-60 रूपए की बचत भी हो रही है।

किसानों के अनुसार कोका कोला की एक बोतल को एक बाल्टी पानी में डाल दिया जाता है। उसके बाद उस पानी का छिड़काव फसल पर किया जाता है। युवा किसान धीरेन्द्र ने बताया कि सबसे पहले उन्हें यह जानकारी धामतरी जिले के एक किसान ने दी। जहां पहले से ही फसलों में कीटनाशक की जगह कोल्ड ड्रिंक्स का इस्तेमाल हो रहा है। धीरेन्द्र कहते हैं कि इससे सस्ता तो कुछ भी नहीं हो सकता।

इस इलाके में अब पेप्सी और कोका कोला की तूती बोलती है। हालांकि किसान नहीं चाहते कि इस बात का प्रचार प्रसार हो। उनको डर है कि यदि इसका प्रचार हो गया तो कहीं शीतल पेय बनाने वाली कम्पनियां इस पर रोक न लगा दें या कहीं इसकी कीमत न बढ़ा दें। जाहिर है किसान महंगे कीटनाशक की जगह सस्ते ड्रिंक्स के इस्तेमाल का अवसर खोना नहीं चाहते।