बदलती जलवायु में उपयोगी गेहूं व चावल की नई किस्में विकसित करने के लिए भारत, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने समझौता किया है। दुनियाभर में लोगों को भोजन सुलभ कराने के लिए तीन बड़ी फसलों में दो फसलें गेहूं व चावल ही हैं।इस पहल के तहत यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएस एड) ऑस्ट्रेलियन सेंटर फॉर प्लांट फंक्शनल जीनोमिक्स (एसीपीएफजी) और भारत की विभा एग्रोटेक के बीच प्राइवेट-पब्लिक रिसर्च पार्टनरशिप को मदद दे रही है।एक सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार एसीपीएफजी के पास जीन टेक्नालॉजी है और खाद्य फसल को खराब मौसम झेलने योग्य बनाने की विशेषज्ञता है। दूसरी ओर विभा एग्रोटेक के पास फील्ड परीक्षण और राइस ट्रांसफोर्मेशन की क्षमता है।इस तरह दोनों की विशेषज्ञताओं का उपयोग करके गेहूं व चावल की ऐसी किस्में विकसित की जा सकती हैं, जो सूखे और लवणता के बाद भी विकसित हो सकें। इन किस्मों के विकसित होने से किसान अनाज का ज्यादा उत्पादन कर सकेंगे, भले ही मौसम में बदलाव से सूखे की स्थिति पैदा हो और खेतों में लवणता की मात्रा ज्यादा हो।यूएस एड ने कहा कि नई किस्मों का सामान्य खेतों की दशा में परीक्षण किया जाएगा और सबसे सफल किस्मों की पहचान करके किसानों को खेती के लिए सुलभ कराया जाएगा। शुरू में रिसर्च का काम भारत और ऑस्ट्रेलिया में शुरू किया जाएगा।इसकी तकनीक दक्षिण एशिया और पूरी दुनिया के उन विकासशील देशों को सुलभ कराई जाएगी, जहां जलवायु परिवर्तन के कारण अनाज की फसलों का प्रभावित हो रहा है। इससे किसानों को भरोसा हो कि वे बदलती जलवायु में भी अच्छी फसल हासिल कर सकेंगे। जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम का पूर्वानुमान लगाना किसानों के लिए मुश्किल होता जा रहा है।यूएस एड के फूड सिक्योरिटी ब्यूरो की चीफ साइंटिस्ट व एग्रीकल्चरल रिसर्च, एक्सटेंशन एंड एजूकेशन के प्रशासक की वरिष्ठ सलाहकार डा. जूली हॉवर्ड ने कहा कि हमें 2050 तक वैश्विक खाद्यान्न उत्पादन 60 फीसदी बढ़ाना होगा, जबकि जलवायु परिवर्तन से फसलों पर प्रभाव आना शुरू हो चुका है। इसका आशय है कि हमें कम जमीन और कम पानी के बावजूद उत्पादन बढ़ाने के लिए सभी उपलब्ध उपाय करने होंगे।