रविवार, 19 फ़रवरी 2012

खेतों में उगाया पैसा-उमाशंकर मिश्र

Capaya Cultivation

मात्र आठवीं कक्षा तक पढे महावीर को यह पता नहीं था कि एक बीघा खेत से 60-70 हजार रुपया कमाया जा सकता है। वह तो अब तक यही देखता आया था कि सरसों हो या गेहूं, एक बीघा खेत से साल भर में 8-10 हजार रुपये की आमदनी ही हो सकती है।

महावीर रात-दिन खेत में जी तोड़ मेहनत करता। सर्दी, गर्मी और बरसात से भी हार नहीं मानता किन्तु उसके पास मौजूद पांच बीघा जमीन से उसके परिवार का गुजारा नहीं हो पा रहा था। खेती-बाड़ी की परंपरा महावीर को विरासत में मिली थी। ऐसी स्थिति में वह किसी फैक्ट्री या अन्य कोई जगह मेहनत-मजदूरी करने भी नहीं जा सकता था। खैर, एक दिन भरतपुर जिले की रूपवास तहसील के धाना खेडली गांव में उनकी मुलाकात लुपिन संस्था के ब्लाक कार्डिनेटर से हुई। यह मुलाकात महावीर के जीवन में बदलाव का प्रतीक बन गई।

लुपिन के कार्डिनेटर ने महावीर को सर्वप्रथम वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि बताई। इसके अलावा महावीर को वर्मी कम्पोस्ट के प्रयोग व उपयोग की विधि भी समझाई गई तथा वर्मी कम्पोस्ट के लिए केंचुआ भी लाकर दिया गया। महावीर ने यह सब गम्भीरता से समझा और अपने खेत पर वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाने की इकाई स्थापित कर ली। महावीर मेहनत के काम में तो कहीं पीछे था ही नहीं। जो वर्मी कम्पोस्ट तैयार हुआ उसे खेत पर ही एकत्रित कर लिया। अब महावीर ने सामान्य खेती के स्थान पर पपीता के अलावा मूली, गाजर, टमाटर, बैंगन, प्याज, लहसुन, आलू आदि सब्जियों की खेती करना शुरू किया। महावीर ने रासायनिक खादों के स्थान पर वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग किया तो इस खाद से ऐसा चमत्कार हुआ कि उत्पादन डेढ़ से दो गुना हो गया तथा फल व सब्जियों में ऐसी चमक पैदा हुई कि वे सब्जी मण्डी में अलग ही नजर आने लगीं और वो अन्य सब्जियों के मुकाबले ऊंचे दाम पर बिकने लगीं।

खैर, महावीर अपने इस नए मुकाम से भी संतुष्ट नहीं हुआ। उसने अपने भाग्य की कहानी को गढना निरन्तर जारी रखा और अपने खेत में जो आंवला एवं अन्य फल पैदा होते उनकी ग्रेडिंग कर अचार, जैम और जैली तैयार करने लगा। इस काम के लिए लुपिन संस्था ने सिडबी के माध्यम से उसे 25 हजार रुपये का ऋण भी दिलाया। महावीर अपने इन उत्पादों को बाजार में बेचने गया तो उसे पहली बार बाजार का समर्थन नहीं मिला किन्तु उसने हार नहीं मानी। महावीर ने अचार व मुरब्बे की पैकिंग में सुधार किया और फिर उन्हें आगरा के बाजार में लेकर गया। अब की बार उच्च गुणवत्तायुक्त तथा बेहतर पैकिंग में पैक उसके अचार व मुरब्बे काफी पसंद किये गये। स्थानीय व्यापारियों ने उसे 30 हजार रुपये के अचार-मुरब्बे सप्लाई करने का आदेश दिया।

आज महावीर इसलिए खुश है क्योंकि अपने हाथों से तैयार की गई उसकी अपनी किस्मत निरन्तर फल-फूल रही है। बच्चे स्कूल जा रहे हैं और घर भी पक्का बनने लगा है। महावीर की मेहनत को देखने व सराहने के बाद दूसरे किसान भी उसकी राह अपनाने का मन बना रहे हैं