बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

जिंसों के निर्यात में अवरोध

चीनी के साथ-साथ अन्य कृषि जिंसों के निर्यात में कई तरह के अवरोध देखने को मिल रहे हैं। सरकार ने गेहूं निर्यात का कोटा हालांकि तय कर दिया है, लेकिन वास्तविक निर्यात में तेजी नहीं आ रही है। कॉफी का निर्यात भी कीमतों के चलते जोर नहीं पकड़ पा रहा है क्योंकि वैश्विक बाजार में भारत के मुकाबले कीमतें कम हैं और यूरोप में मंदी के चलते मांग पर असर पड़ा है। मक्के का निर्यात हुआ है, लेकिन इसकी गुणवत्ता को लेकर शिकायतें आ रही हैं और निर्यात बाजार में भारत की साख को धक्का पहुंचा है। वैश्विक बाजार में इफरात कपास और चीन की खरीदारी में कमजोरी के बावजूद इसका निर्यात हालांकि बेहतर रहा है।
देश में भारी भरकम भंडार के चलते पिछले साल के आखिर में 20 लाख टन गेहूं निर्यात की अनुमति दी गई थी, लेकिन वैश्विक बाजार मांग के मुकाबले ज्यादा आपूर्ति का सामना कर रहा है और कीमतें भी भारतीय निर्यात के अनुकूल नहीं है। भारत में सक्रिय वैश्विक स्तर पर जिंस का कारोबार करने वाले एक कारोबारी ने कहा कि अभी तक आधा निर्यात भी नहीं हो पाया है। अब तक महज 5 लाख टन गेहूं ही विदेश भेजा जा सका है। राबो बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में अपेक्षाकृत गेहूं की भरमार रही है और कीमतें भी कम रहने की संभावना है। भारत इसी तरह की स्थिति से जूझ रहा है और इस सीजन में गेहूं का उत्पादन काफी ज्यादा रहने की संभावना है और यह 880 लाख टन के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच सकती है।
चीनी के मामले में भी ऐसी ही स्थिति है क्योंकि ब्राजील की अगुआई में वैश्विक स्तर पर इफरात चीनी उपलब्ध है। अभी भी हालांकि निर्यात हो रहा है और यहां से जल्द ही 10 लाख टन चीनी निर्यात का कोटा पूरा हो जाएगा। हालांकि 10 लाख टन और चीनी निर्यात की अनुमति का इंतजार किया जा रहा है। उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि वे इसलिए निर्यात करना चाहते हैं कि अगले सीजन में उनके पास चीनी न रहे। पिछले कुछ दिनों में चीनी की कीमतें सुधरी हैं और लंदन के बाजार में यह 665 डॉलर पर बिक रही है।
मक्के के मामले में भारत का निर्यात अब तक 10 लाख टन को पार कर चुका है और यह मार्च तक 27 लाख टन को पार कर सकता है क्योंकि वैश्विक बाजार में कीमतें ज्यादा हैं। इस साल देश में 216 लाख टन मक्के का उत्पादन हो सकता है। लेकिन गुणवत्ता के मामले में भारत की छवि को धक्का लगा है।
अमेरिकी अनाज परिषद के अमित सचदेव ने कहा - भारत से अभी भी निर्यात हो रहा है, लेकिन रिपोर्ट से पता चलता है कि मक्के की कुछ खेपों में गुणवत्ता संबंधी सवाल उठ खड़े हुए हैं और इस वजह से कुछ समय तक इसकी कीमतें नरम रह सकती है। खबर है कि वियतनाम भेजी गई मक्के की खेप में ज्यादा नमी और टूटे हुए मक्के मिले हैं। निर्यात की कुछ खेप अस्वीकार भी की जा सकती है।
वैश्विक बाजार में इफरात कपास होने के बावजूद पिछले कुछ दिनों में कपास निर्यात के पंजीकरण में अचानक तेजी आ गई है। अंतरराष्ट्रीय कपास सलाहकार समिति के मुताबिक, साल 2011-12 में कपास का वैश्विक उत्पादन 7 फीसदी बढ़कर 268 लाख टन रहने का अनुमान है। पिछले पांच साल में उत्पादन का यह सर्वोच्च स्तर होगा। किसानों को इस सीजन में कम कीमत मिलने के चलते हालांकि साल 2012-13 में उत्पादन घटकर 249 लाख पर आ जाने की संभावना है। देश में कपास की कीमतें घट रही हैं और अब यह एक पखवाड़े पहले की कीमत के मुकाबले 10 फीसदी सस्ता है। भाईदास खरसोनदास ऐंड कंपनी के शिरीष शाह ने कहा - अब तक 70 लाख गांठ कपास के निर्यात की खबर है और बताया जा रहा है कि डीजीएफटी के पास पंजीकरण 1 करोड़ गांठ को पार कर गया है। बासमती चावल के न्यूनतम निर्यात मूल्य में कमी किए जाने के बाद इसके निर्यात में तेजी आने की संभावना है। 23 फरवरी को सरकार ने इसकी एमईपी 900 डॉलर प्रति टन से घटाकर 700 डॉलर प्रति टन करने की अधिसूचना जारी कर दी है