बुधवार, 8 मार्च 2023

Pm kisan status 2023 कैसे चेक करें ?

 प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना 

(PM-KISAN) एक सरकारी योजना है जो भारत के किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। यह योजना भारत के सभी क्षेत्रों के किसानों के लिए है। प्रत्येक आधार कार्ड धारक को इस योजना के तहत सालाना 6000 रुपये की सहायता राशि प्रदान की जाती है।


इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश के किसानों को समृद्धि देना है। किसानों को अपनी खेती के लिए वित्तीय सहायता की जरूरत होती है ताकि वे अपनी खेती को अधिक उत्पादक बना सकें। इसलिए, सरकार ने इस योजना को शुरू किया है ताकि देश के किसानों को वित्तीय सहायता मिल सके।


रविवार, 5 मार्च 2023

कृषि आय पर मोदी नीति



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की कृषि उद्योग को उन्नत करने के लिए कई नीतियां शुरू की गई हैं। उन्होंने इस क्षेत्र में अनेक सुधार किए हैं ताकि किसानों को बेहतर रोजगार विकल्पों की पेशकश मिल सके। इन नीतियों में खेती के फायदे को बढ़ाने, किसानों के जीवन को सुधारने और अधिक से अधिक किसानों को सहयोग देने के लिए भी शामिल हैं।


भारत में कृषि उद्योग का सबसे बड़ा समस्या किसानों की आय की कमी है। इस समस्या को हल करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने कई नीतियों का आयोजन किया है। उनकी नीतियों में से एक नीति है कृषि आय बढ़ाने के लिए किसानों को बेहतर सहायता देना।




RAJASTHAN BUDGET 2023

 राजस्थान की गहलोत सरकार ने 10 फरवरी को कार्यकाल का आखिरी बजट पेश कर दिया. बजट से राजस्थान के हर तबके को उम्मीद थी. चूंकि अब राजस्थान चुनावी मोड में आने वाला है. ऐसे में गहलोत सरकार की कोशिश सभी वर्गां को साधने की रही. उन्होंने जहां युवा तबके पर काफी फोकस किया. वहीं, बजट में किसानों को भी निराश नहीं किया. राज्य सरकार ने अपने बजट में किसानों की झोली भर दी है. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि कृषि क्षेत्र में राजस्थान सरकार ने किसानों के लिए क्या दिया है?



कर्मियों को टेबलेट, बनेंगे पशु मित्र

राज्य सरकार कृषि क्षेत्र में काम करने वाले कर्मियों को तकनीकी तौर पर उन्नत बनाना चाहती है. इसी को लेकर पटवारी, ग्राम सेवक, गिरदावर समेत अन्य कार्मियों को राज्य सरकार की ओर से टेबलेट दिए जाने की घोषणा की गई. लंपी वायरस ने राज्य में जमकर कहर बरपाया. स्टाफ की कमी भी देखने को मिली. इसी के मददेनजर राज्य में पशु मित्र बनाए जाएंगे. 


पशुपालकों को भी दी राहत लंपी की चंपी में आकर हजारों पशुओं की मौत हो गई. राज्य सरकार ने बजट में घोषणा की है कि दुधारू पशु की मौत होने पर पशुपालक को 40 हजार रुपये दिए जाएंगे. प्रदेश के सभी पशुपालकों का यूनिवर्सल कवरेज किया जाएगा. इससे 2-2 दूधारू पशुओं को 40-40 हजार रुपये का बीमा कवर किया जाएगा. 

"कृषि उत्पादन की आय बढ़ाने के टिप्स"



आज के दौर में कृषि व्यवसाय अपनी स्थानीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन, अनेक बार कृषि व्यवसाय के लोग अपनी आमदनी में वृद्धि करने के बारे में सोचते हैं। आज हम इस लेख में कुछ ऐसे टिप्स बताएंगे जिनसे आप अपनी कृषि आमदनी को बढ़ा सकते हैं।

शनिवार, 4 मार्च 2023

सौर ऊर्जा :--- एक स्थायी समाधान



भारत एक विशाल कृषि देश है जहाँ समुद्री सतह से ऊँची पहाड़ियों तक अनेक तरह की जलवायु होती है। इसलिए, बीज उत्पादन, फसल उत्पादन, वितरण और प्रसंस्करण जैसे कृषि संबंधी उपकरणों को चलाने के लिए बिजली का उपयोग किया जाता है।





शायद आपने सौर पैनलों के बारे में सुना होगा जो बिजली का स्रोत होते हैं। सौर ऊर्जा एक अधिकतम संभवता वाला विकल्प है जो खेती में उपयोग किया जा सकता है।

भारत में कृषि सेक्टर को सौर ऊर्जा से जोड़ने के लिए विभिन्न सौर प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग शुरू हुए हैं। इनमें से एक है सौर पैनलों का उपयोग करके खेती करना। यह एक
स्थायी समाधान हो सकता है जो भारत के कृषि सेक्टर में ऊर्जा की विकास को प्रोत्साहित करेगा।


रविवार, 16 दिसंबर 2018

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शनिवार, 8 दिसंबर 2018

welcome back

खेत खलिहान एक बार फिर लौट आया है आप सब के बीच, आज के बाद खेती से जुडी हर जानकारी आपको मिलेगी। किसी भी जानकारी के लिए  संपर्क करे 09462020000 ,धन्यवाद 

रविवार, 16 जून 2013

बासमती धान की ज्यादा बुवाई होने की संभावना

निर्यातकों के साथ घरेलू मांग बढऩे से चालू सीजन में बासमती चावल और धान की कीमतों में तेजी आई है। इससे चालू खरीफ में बासमती धान की बुवाई बढ़ सकती है।मानसूनी बारिश शुरू होने के बाद पूसा-1121 बासमती चावल की बुवाई शुरू हो जाएगी तथा चालू सीजन में पूसा-1121 बासमती धान का भाव बढ़कर ऊपर में 4,500 रुपये और पूसा-1121 बासमती चावल सेला का दाम बढ़कर 8,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गया था।खुरियां एग्रो के डायरेक्टर रामविलास खुरानिया ने बताया कि निर्यातकों के साथ ही घरेलू मांग अच्छी होने से चालू सीजन में बासमती धान और चावल की कीमतों में तेजी आई थी। ऐसे में पंजाब और हरियाणा में चालू खरीफ में किसानों द्वारा बासमती धान पूसा-1121 की बुवाई ज्यादा क्षेत्रफल में की जाएगी।इसके लिए पौध तैयार की जा रही है तथा मानसूनी बारिश के साथ ही किसानों द्वारा रोपाई शुरू कर दी जाएगी। नरेश कुमार एंड संस के प्रबंधक एन. के. गुप्ता ने बताया कि चालू सीजन में उत्पादक मंडियों में पूसा-1121 धान का दाम बढ़कर ऊपर में 4,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गया था।इस दौरान पूसा-1121 बासमती चावल सेला का दाम बढ़कर 8,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गया था। उन्होंने बताया कि बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी होने की संभावना से ही उत्पादक मंडियों में इनके दाम घटने शुरू हो गए हैं। सप्ताहभर में पूसा-1121 बासमती धान का भाव घटकर 3,600 रुपये प्रति क्विंटल और पूसा-1121 बासमती चावल सेला का दाम 7,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गया।कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि खाड़ी देशों ईरान, इराक, सऊदी अरब और कुवैत की अच्छी आयात मांग से वित्त वर्ष 2012-13 में बासमती चावल का निर्यात 10 फीसदी बढ़कर 35.2 लाख टन का हुआ है।वित्त वर्ष 2011-12 में 32.26 लाख टन चावल का निर्यात हुआ था। उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष 2013-14 के पहले महीने अप्रैल में बासमती चावल के निर्यात सौदों के रजिस्ट्रेशन में 45.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।इस दौरान 3.50 लाख टन बासमती चावल के निर्यात सौदों का रजिस्ट्रेशन हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 2.40 लाख टन का हुआ था। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान बासमती चावल का निर्यात मूल्य के आधार पर 25.51 फीसदी बढ़ा है

रविवार, 2 जून 2013

स्वस्थ एवं खरपतवार रहित नवपौध उगाने की पद्धित

स्वस्थ एवं खरपतवार रहित नवपौध प्राप्त करने के लिये एक नई विधि जिसमें पुरानी बोरियों को इस्तेमाल किया गया, में कम मजदूरों की संख्या, खरपतवार की समस्या का हल तथा मौजूदा पद्धित द्वारा तैयार की गई नवपौध से कम खर्च वाला पाया गया । इस पद्धित से प्राप्त नवपौध को आसानी से एस. आर. आई जिसमें १२-१४ दिन की नवपौध का इस्तेमाल होता है तथा मौजूदा पौध रोपण जिसमें २०-२५ दिन की नवपौध के लिये उपयुक्त पाया गया है ।नवपौध के लिये खेत व क्यारी की तैयारी:मई माह में गेहूं कटाई के बाद जमीन की सिंचाई के बाद खेत में खड़े पानी में ५. कि.ग्राम. की दर से ढेंचा बीजों को छितराया जाता है । ५०-६० दिनों के उपरान्त जमीन में हल चला कर ढेंचा पौधों को हरी खाद के रूप में मिला दिया जाता है ।धान की पौध रोपण से एक महीना पहले नवपौध के लिये खेत की तैयारी की जाती है ।नर्सरी क्षेत्र में बतर आने के बाद उसे ३ से ४ बार हल से जुताई करें व पाटा लगायें ।बेहतर जुताई व समान सतह के लिये क्लटीवेटर के बाद पाटा लगायें ।जहां कोनो में हल न पहुंचता हो खेत के उन कोनो की मिट्टी फावड़े से भुरभुरी कर लें ।इस हरी खाद से पोषक पदार्थ उपलब्ता और मृदा उर्वरा स्तर में सुधार आता है । हरी खाद को मिट्टी में अच्छी तरह गलने सड़ने के लिये ३-४ बार ट्रैक्टर से जुताई कर के छोड़ दिया जाता है ।

नर्सरी क्यारियों की तैयारी

एक हेक्टेयर खेत पौध रोपण के लिये २५० वर्ग मीटर नर्सरी एरिया काफी है नर्सरी एरिया बीज बुआई के लिये कुल एरियानालियों के साथ ५०० वर्ग मीटरनालियों के बिना २५० वर्ग मीटरक्यारियों की संख्या २०क्यारी की लम्बाई चौड़ाई २० मी X ०.६ मीदो क्यारियों के बीच की दूरी ६० सै.मी सिंचाई के लियेजूट बोरी का साईज ०.६ मी X २ मीएक क्यारी में जूट बोरी के टुकड़ो की संख्या १०बीज की मात्रा प्रति क्यारी ६०० ग्रा (१२.५ कि.ग्रा बीज प्रति हे. की दर से)

खाद प्रति क्यारी

गोबर की कुल खाद ८ कि.ग्राम प्रति कयारी३ कि.ग्राम जूट बोरी टुकड़ो के उपर५ कि.ग्राम जूट बोरी टुकड़ों के नीचेएन.पी.के २०० ग्राम प्रति क्यारी जिंक २५ ग्राम प्रति क्यारी

बीज का उपचार:

प्रति हे. खेत की रूपाई के लिये १२.५ कि.ग्राम धान के बीज को २० लीटर पानी के घोल में १२ घनटे के लिये भिगो दें ।बीजों का फालतू पानी निकालकर नमी वाले जूट बैग में अंकुरित होने के लिये रख दें । बैग में नमी का स्तर बना रहना चाहिये ।

बुआई और उसके बाद देखभाल

नर्सरी क्यारियां ०.६ मी चौड़ी व २० मीटर लम्बी व ४-५ ईंच उँची तैयार करेंनर्सरी क्यारियों पर गोबर की गली सड़ी खाद ५ कि.ग्रा जिंक २५ ग्राम व एन.पी.के २०० ग्राम प्रति क्यारी के हिसाब से बिखेर दें । जूट बोरों के टुकड़ो को ४ से ५ घनटे पानी में भिगो लें ।भीगे हुए जूट के टुकड़ों को नर्सरी क्यारियों पर बिछा लें ।जूट बोरों के टुकड़ों पर अंकुरित धान के बीजों को समान रूप से फेला देंइन बीजों के उपर पिसी हुई गोबर की खाद से पतला पतला ढक लें ।जब तक नवपौध हरी न हो जाये पक्षियों से होने वाले नुकसान को रोकने के लिये विशेष सावधानी बरतें । नवपौध अपनी जड़ों को जूट बोरों को पैंदते हुए नीचे डाली गोबर की खाद से अपना खाना आसानी से प्राप्त कर लेगी ।जूट के बोरों पर बोई धान की नर्सरी पर खरपतवारों का प्रकोप न के बराबर होता है । क्योंकि खरपतवारों के लिए जूट के बोरों को लांघ कर आना संभव नहीं है ।इस विधि द्वारा नवपौध १५ दिन की आयु में रौपण के लिए तैयार हो जाती है ं  लाभइस विधि द्वारा नवपौध उगाने के निम्नलिखित लाभ है ।जूट के बोरे खरपतवारों के लिए बाधा सिद्ध होते हैं और उन्हें अंकुरित नहीं होने देते। उल्लेखनीय है कि परंपरागत नर्सरी की यह प्रमुख समस्या है जहां आरंभिक अवस्थाओं के दौरान चावल और खरपतवारों के पौद्यों को अलग-अलग पहचानना कठिन होता है।जडें जूट के गीले बोरों के माध्यम से प्रवेश कर जाती हैं तथा निरंतर बोरों के नीचे मौजूद पोषक तत्व लेती रहती हैं। जूट के बोरों के चारों तरफ से हवा भी बेहतर ढंग से प्रवेश करती है जिससे पौद् की बढ़वार तीव्र गति से होती है। परंपरागत नर्सरी की तुलना में पौद उखाड़ने का समय भी आधा रह जाता है जिससे श्रमिकों की कम आवश्यकता होती है।इस विधि में पौदों की जड़ों से मिट्टी नहीं चिपकी होती है इसलिए एक-एक पौधे को अलग करना सरल होता है जो बीजोत्पादन की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है।जूट के बोरों से पौद आसानी से व सावधानीपूर्वक उखाड़ी जा सकती है जिससे उसे तथा उसकी जड़ों को कोई यांत्रिक क्षति नहीं पहुंचती है और इस प्रकार बैकेनी रोग के प्रकोप का जोखिम कम हो जाता है।बीज की फसल के लिए नर्सरी उगाने की दृष्टि से आनुवंशिक शुद्धता सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। स्वेच्छा से बढ़ने वाले पौधों की समस्या इस विधि से सफलतापूर्वक सुलझाई जा सकती है क्योंकि जूट के बोरों की पर्त बीजों के अंकुरण को बाहर नहीं आने देती और खाली स्थानों पर स्वेच्छा से उगने वाले पौधे बहुत आसानी से हाथ से हटाए जा सकते हैं।

दीमक का उपचार:

दीमक के उपचार हेतु क्लोरोपाईरोफोस को ३.२५ लीटर/हे० की दर से पहली व दूसरी सिंचाई पर प्रयोग करें ।तालिका १. परंपरागत और जूट के बोरों पर तैयार की गई नर्सरी का तुलनात्मक मूल्यांकन परंपरागत विधिजूट के बोरों पर तैयारी नर्सरीपौद की उचाई (सें.मी.) (बुआई के 14 दिन बाद)22.9031.70प्रति पौद पत्तियों की संख्या3.707.20ताजा भार (ग्रा.@पौद)2.064.08पौद उखाड़ने समय (100 पौद@से.)64.0027.00खरपतवार का शुष्क पदार्थ (ग्रा .@0.25 मी2)29.803.20तालिका २. नई तकनीक तथा परंपरागत विधि से नर्सरी उगाने की आर्थिकी (रु./है.) परंपरागतगत विधिजूट के बोरों पर तैयार नर्सरी श्रम मानव दिवसों की संख्याव्ययश्रम मानव दिवसों की संख्याव्ययनर्सरी क्यारी तैयार करना3600.003600.00खरपतवार निकालना204000.001100.00सिंचाई102000.0051000.00पौद उखाड़ना61200.002400.00जूट के बोरों की लागत---3200.00योग-7800-5300जूट के बोरों की लागत: १६@-रु. प्रति बोरा; मानव दिवस मजदूरी: २०० रु. प्रति मानव दिवस

हरी खाद - मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढाने का एक सस्ता विकल्प

  मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखने के लिए हरी खाद एक सस्ता विकल्प है । सही समय पर फलीदार पौधे की खड़ी फसल को मिट्टी में ट्रेक्टर से हल चला कर दबा देने से जो खाद बनती है उसको हरी खाद कहते हैं ।

आदर्श हरी खाद में निम्नलिखित गुण होने चाहिए

•           उगाने का न्यूनतम खर्च•           न्यूनतम सिंचाई आवश्यकता•           कम से कम पादम संरक्षण•           कम समय में अधिक मात्रा में हरी खाद प्रदान कर सक•           विपरीत परिस्थितियों  में भी उगने की क्षमता हो•           जो खरपतवारों को दबाते हुए जल्दी बढ़त प्राप्त करे•           जो उपलब्ध वातावरण का प्रयोग करते हुए अधिकतम उपज दे ।

हरी खाद बनाने के लिये अनुकूल फसले :

ढेंचा, लोबिया, उरद, मूंग, ग्वार बरसीम, कुछ मुख्य फसले है जिसका प्रयोग हरी खाद बनाने में होता है ।  ढेंचा इनमें से अधिक आकांक्षित है । ढैंचा की मुख्य किस्में सस्बेनीया ऐजिप्टिका, एस रोस्ट्रेटा तथा एस एक्वेलेटा अपने त्वरित खनिजकरण पैर्टन, उच्च नाइट्रोजन मात्रा तथा अल्प ब्रूछ अनुपात के कारण बाद में बोई गई मुख्य फसल की उत्पादकता पर उल्लेखनीय प्रभाव डालने में सक्षम है

हरी खाद के पौधो को मिट्टी में मिलाने की अवस्था

हरी खाद के लिये बोई गई फसल ५५ से ६० दिन बाद जोत कर मिट्टी में मिलाने के लिये तैयार हो जाती है ।इस अवस्था पर पौधे की लम्बाई व हरी शुष्क सामग्री अधिकतम होती है ५५ स ६० दिन की फसल अवस्था पर तना नरम व नाजुक होता है जो आसानी से मिट्टी में कट कर मिल जाता है ।इस अवस्था में कार्बन-नाईट्रोजन अनुपात कम होता है, पौधे रसीले व जैविक पदार्थ से भरे होते है इस अवस्था पर नाइट्रोजन की मात्रा की उपलब्धता बहुत अधिक होती हैजैसे जैसे हरी खाद के लिये लगाई गई फसल की अवस्था बढ़ती है कार्बन-नाइट्रोजन अनुपात बढ़ जाता है, जीवाणु हरी खाद के पौधो को गलाने सड़ाने के लिये मिट्टी की नाइट्रोजन इस्तेमाल करते हैं । जिससे मिट्टी में अस्थाई रूप से नाइट्रोजन की कमी हो जाती है ।

हरी खाद बनाने की विधि

• अप्रैल.मई माह में गेहूँ की कटाई के बाद जमीन की सिंचाई कर लें ।खेत में खड़े पानी में ५० कि० ग्रा० Áति है० की दर से ढेंचा का बीज छितरा लें• जरूरत पढ़ने पर १० से १५ दिन में ढेंचा फसल की हल्की सिंचाई कर लें ।• २० दिन की अवस्था पर २५ कि० Áति ह०की दर से यूरिया को खेत में छितराने से नोडयूल बनने में सहायता मिलती है ।• ५५ से ६० दिन की अवस्था में हल चला कर हरी खाद को पुनरू खेत में मिला दिया जाता है ।इस तरह लगभग १०.१५ टन Áति है० की दर से हरी खाद उपलब्ध हो जाती है ।• जिससे लगभग ६०.८० कि०ग्रा० नाइट्रोजन Áति है० प्राप्त होता है ।मिट्टी में ढेंचे के पौधो के गलने सड़ने से बैक्टीरिया द्वारा नियत सभी नाइट्रोजन जैविक रूप में लम्बे समय के लिए कार्बन के साथ मिट्टी को वापिस मिल जाते हैं ।

हरी खाद के लाभ

हरी खाद को मिट्टी में मिलाने से मिट्टी की भौतिक शारीरिक स्थिति में सुधार होता है ।हरी खाद से मृदा उर्वरता की भरपाई होती हैन्यूट्रीयन् टअस की उपलब्धता को बढ़ाता हैसूक्ष्म जीवाणुओं की गतिविधियों को बढ़ाता हैमिट्टी की संरचना में सुधार होने के कारण फसल की जड़ों का फैलाव अच्छा होता है ।हरी खाद के लिए उपयोग किये गये फलीदार पौधे वातावरण से नाइट्रोजन व्यवस्थित करके नोडयूल्ज में जमा करते हैं जिससे भूमि की नाइट्रोजन शक्ति बढ़ती है ।हरी खाद के लिये उपयोग किये गये पौधो को जब जमीन में हल चला कर दबाया जाता है तो उनके गलने सड़ने से नोडयूल्ज में जमा की गई नाइट्रोजन जैविक रूप में मिट्टी में वापिस आ कर उसकी उर्वरक शक्ति को बढ़ाती है ।पौधो के मिट्टी में गलने सड़ने से मिट्टी की नमी को जल धारण की क्षमता में बढ़ोतरी होती है । हरी खाद के गलने सड़ने से कार्बनडाइआक्साइड गैस निकलती है जो कि मिट्टी से आवश्यक तत्व को मुक्त करवा कर मुख्य फसल के पौधो को आसानी से उपलब्ध करवाती है हरी खाद के बिना बोई गई धान की फसल              हरी खाद दबाने के बाद बोई गई धान की फसल  हरी खाद दबाने के बाद बोई गई धान की फसल में ऐकिनोक्लोआ जातियों के खरपतवार न के बराबर होते है ज¨ हरी खाद के ऐलेलोकेमिकल प्रभाव को दर्शाते है ।

नई अनाज किस्मों के लिए अंतरराष्ट्रीय पहल

बदलती जलवायु में उपयोगी गेहूं व चावल की नई किस्में विकसित करने के लिए भारत, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने समझौता किया है। दुनियाभर में लोगों को भोजन सुलभ कराने के लिए तीन बड़ी फसलों में दो फसलें गेहूं व चावल ही हैं।इस पहल के तहत यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएस एड) ऑस्ट्रेलियन सेंटर फॉर प्लांट फंक्शनल जीनोमिक्स (एसीपीएफजी) और भारत की विभा एग्रोटेक के बीच प्राइवेट-पब्लिक रिसर्च पार्टनरशिप को मदद दे रही है।एक सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार एसीपीएफजी के पास जीन टेक्नालॉजी है और खाद्य फसल को खराब मौसम झेलने योग्य बनाने की विशेषज्ञता है। दूसरी ओर विभा एग्रोटेक के पास फील्ड परीक्षण और राइस ट्रांसफोर्मेशन की क्षमता है।इस तरह दोनों की विशेषज्ञताओं का उपयोग करके गेहूं व चावल की ऐसी किस्में विकसित की जा सकती हैं, जो सूखे और लवणता के बाद भी विकसित हो सकें। इन किस्मों के विकसित होने से किसान अनाज का ज्यादा उत्पादन कर सकेंगे, भले ही मौसम में बदलाव से सूखे की स्थिति पैदा हो और खेतों में लवणता की मात्रा ज्यादा हो।यूएस एड ने कहा कि नई किस्मों का सामान्य खेतों की दशा में परीक्षण किया जाएगा और सबसे सफल किस्मों की पहचान करके किसानों को खेती के लिए सुलभ कराया जाएगा। शुरू में रिसर्च का काम भारत और ऑस्ट्रेलिया में शुरू किया जाएगा।इसकी तकनीक दक्षिण एशिया और पूरी दुनिया के उन विकासशील देशों को सुलभ कराई जाएगी, जहां जलवायु परिवर्तन के कारण अनाज की फसलों का प्रभावित हो रहा है। इससे किसानों को भरोसा हो कि वे बदलती जलवायु में भी अच्छी फसल हासिल कर सकेंगे। जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम का पूर्वानुमान लगाना किसानों के लिए मुश्किल होता जा रहा है।यूएस एड के फूड सिक्योरिटी ब्यूरो की चीफ साइंटिस्ट व एग्रीकल्चरल रिसर्च, एक्सटेंशन एंड एजूकेशन के प्रशासक की वरिष्ठ सलाहकार डा. जूली हॉवर्ड ने कहा कि हमें 2050 तक वैश्विक खाद्यान्न उत्पादन 60 फीसदी बढ़ाना होगा, जबकि जलवायु परिवर्तन से फसलों पर प्रभाव आना शुरू हो चुका है। इसका आशय है कि हमें कम जमीन और कम पानी के बावजूद उत्पादन बढ़ाने के लिए सभी उपलब्ध उपाय करने होंगे।

उत्तर भारत में कपास का रकबा 15 फीसदी घटने का अनुमान

चालू खरीफ सीजन में अभी तक 7.15 लाख हैक्टेयर में ही कपास की बुवाईमोह भंग - पिछले साल कपास की आवक के समय उत्पादक मंडियों में दाम घटकर न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी नीचे चले गए थे जबकि धान और ग्वार का अच्छा भाव मिला था। इसलिए किसानों की दिलचस्पी धान और ग्वार की खेती में ज्यादा है।राज्यों में बुवाई हरियाणा में कपास की बुवाई 1.50 लाख हैक्टेयर में पंजाब में हुई 4.80 लाख हैक्टेयर में कपास की बुवाई राजस्थान में हो चुकी है 70 हजार हैक्टेयर में बुवाईउत्तर भारत के प्रमुख उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में चालू खरीफ में कपास की बुवाई में 10 से 15 फीसदी की कमी आने की आशंका है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में अभी तक कपास की बुवाई 7.15 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 7.22 लाख हैक्टेयर में हुई थी।उत्तर भारत कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि पिछले साल कपास की नई फसल की आवक के समय उत्पादक मंडियों में दाम घटकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी नीचे चले गए थे जबकि किसानों को अन्य फसलों धान और ग्वार का अच्छा भाव मिला था।इसलिए किसान कपास के बजाय धान और ग्वार की बुवाई को प्राथमिकता दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि पंजाब और हरियाणा में किसान कपास के बजाय धान की बुवाई कर रहे हैं जबकि राजस्थान में ग्वार की बुवाई करेंगे। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में हरियाणा में अभी तक कपास की बुवाई 1.50 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 2.44 लाख हैक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी।हालांकि पंजाब और राजस्थान में अभी तक बुवाई पिछले साल की तुलना में बढ़ी है। पंजाब में चालू खरीफ में अभी तक 4.80 लाख हैक्टेयर में कपास की बुवाई हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 3.91 लाख हैक्टेयर में हुई थी। इसी तरह से राजस्थान में चालू खरीद में बुवाई बढ़कर 70 हजार हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 65 हजार हैक्टेयर में बुवाई हुई थी।रबी विपणन सीजन 2012-13 के लिए केंद्र सरकार ने कपास के एमएसपी में 300 रुपये की बढ़ोतरी कर मीडियम स्टेपल और लांग स्टेपल का भाव क्रमश: 3,600 और 3,900 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था जबकि खरीफ विपणन सीजन 2013-14 के लिए कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने कपास के एमएसपी में 100 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 3,700 और 4,000 रुपये प्रति क्विंटल तय करने की सिफारिश की है।अहमदाबाद मंडी में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव इस समय 38,500 से 39,000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) चल रहा है।कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2012-13 में देश में 338 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) कपास का उत्पादन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 352 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। उद्योग के अनुमान के अनुसार वर्ष 2012-13 में देश में 352 लाख गांठ कपास का उत्पादन होगा।

स्ट्रॉबेरी का अहसास कराएगा जीएम टमाटर

स्ट्रॉबेरी व रसभरी खाने का अहसास अब टमाटर भी दिला सकते हैं। यह स्वाद देने के लिए वैज्ञानिकों ने टमाटर के जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) किस्म को विकसित किया है। यह बैंगनी टमाटर सामान्य टमाटर की तुलना में बेहतर स्वाद के साथ लम्बे समय तक चलने वाला होगा।टमाटर से जुड़े जॉन इंनेस सेंटर के प्रोफेसर कैथी मार्टिन ने बताया कि इस टमाटर की गुणवत्ता ने इसे सामान्य टमाटर से अलग बनाया है। इसका फ्लेवर सबसे अलग है। यह सामान्य की तुलना में स्वास्थ्य के लिए लाभकारी व लंबे समय तक सही रहने वाला है।मार्टिन व उनके सहयोगियों की करंट बॉयोलॉजी में छपे अध्ययन के अनुसार इस जीएम टमाटर में एंथोसाययिन और प्राकृतिक एंटी ऑक्साइड की क्षमता भी ज्यादा है। चूहे पर रिर्चस के दौरान पाया गया कि कैंसर ग्रस्त चूहे की जीवन को भी बढ़ा देता है। साथ ही टमाटर की लाइफ भी सामान्य टमाटर की तुलना में 21 दिनों से बढ़ कर 48 दिन पाई गई।अध्ययन से जुड़े यांग झांग ने बताया कि कटाई के बाद टमाटर का सडऩा कृषकों व सुपर मार्केट के लिए समस्या बन जाता है। लेकिन इस टमाटर से उनकी यह समस्या दूर हो जाएगी। टमाटर को सडऩे से बचाने के लिए सामान्य टमाटर को कच्चे में ही तोड़ लिया जाता था और बाद में उसे इथाइल से पकाते थे जिससे उनका स्वाद चला जाता है।जबकि जीएम टमाटर लंबे समय तक बेहतर फ्लेवर के साथ स्वस्थ रहने की क्षमता रखता है। इसके अलावा इसमें बोट्राइटिस साइनीरिया से बचने की भी क्षमता है। जीएम टमाटर में एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा भी ज्यादा है जो इसके प्रजनन क्षमता को बढ़ता है

शनिवार, 1 जून 2013

राजस्थान में समय पर आएगा मानसून, खूब बरसेंगे बदरा

जयपुर। मानसून इस बार समय पर आएगा और जमकर भिगोएगा। शुक्रवार को केरल के समीप तटीय क्षेत्रों में बादल  पहुंच गए। ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दो जून को मानसून केरल के रास्ते भारत में प्रवेश कर जाएगा। राजस्थान के पूर्वी इलाकों झालावाड़, बांसवाड़ा और डूंगरपुर में मानसून के 14 से 20 जून के बीच प्रवेश करने के संकेत हैं।  28 जून से 2 जुलाई के बीच मध्य राजस्थान और जयपुर तक मानसून के पहुंचने की संभावना है। जोधपुर-जैसलमेर सहित पश्चिमी हिस्से में इसके जुलाई के दूसरे सप्ताह में पहुंचने की उम्मीद है। सामान्यतया मानसून राज्य में 15  जून और जयपुर में एक जुलाई को दस्तक देता है।  दिल्ली और पुणे के मौसम विज्ञान विभागों के अनुसार मानसून सामान्य रहेगा। पूरे भारत में अच्छी बारिश होगी। दिल्ली मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक डॉ. लक्ष्मण सिंह राठौड़ के अनुसार इस बार सामान्य से 98% वर्षा होगी। हालांकि यह 5% कम या ज्यादा भी हो सकती है। मौसम के ज्यादातर पैमाने अच्छे मानसून के पक्ष में हैं। समुद्री या पर्यावरणीय बाधा नहीं दिख रही है

एक माह पहले ही बंद होगी गेहूं की सरकारी खरीद

 मंडियों में आवक घटने से सरकार ने गेहूं की खरीद एक महीने पहले ही बंद करने की योजना बनाई है। खाद्य मंत्रालय ने इस बावत सभी प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों को पत्र भी लिख दिया है। चालू रबी विपणन सीजन 2013-14 में गेहूं की सरकारी खरीद में 25.5 फीसदी की कमी आकर अभी तक कुल खरीद 249.77 लाख टन की हो पाई है।खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सामान्यत: रबी विपणन सीजन में गेहूं की सरकारी खरीद 30 जून तक चलती है, लेकिन उत्पादक मंडियों में दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,350 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर चल रहे हैं, इसलिए सरकारी खरीद केंद्रों पर इस समय गेहूं की आवक घटकर काफी कम रह गई है।28 मई को एमएसपी पर केवल 18,081 टन गेहूं की खरीद ही हुई है। इसीलिए गेहूं की सरकारी खरीद को महीने भर पहले ही बंद करने का निर्णय लिया है। इस बावत सभी संबंधित राज्यों को पत्र लिखकर सूचित भी कर दिया है।उन्होंने बताया कि चालू रबी विपणन सीजन में सभी प्रमुख उत्पादक राज्यों में गेहूं की सरकारी खरीद में कमी आई है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अनुसार चालू रबी विपणन सीजन में अभी तक एमएसपी पर केवल 249.77 लाख टन गेहूं की खरीद हो पाई है जबकि खरीद का लक्ष्य 440 लाख टन का तय किया था।पिछले रबी विपणन सीजन में एफसीआई ने इस समय तक 335.56 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद की थी जबकि कुल खरीद 381.48 लाख टन की हुई थी।चालू रबी विपणन सीजन में पंजाब से अभी तक एमएसपी पर केवल 108.96 लाख टन गेहूं की खरीद हो पाई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 127.51 लाख टन की खरीद हो चुकी थी। इसी तरह से हरियाणा से अभी तक एमएसपी पर केवल 58.72 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है जबकि पिछले साल इस समय तक 86.35 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी।उत्तर प्रदेश से 6.69 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 29.06 लाख टन, मध्य प्रदेश से 63.39 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 75.49 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी। राजस्थान में पिछले साल के 14.09 लाख टन की तुलना में अभी तक केवल 12.16 लाख टन गेहूं की ही खरीद हो पाई है।कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2012-13 में गेहूं का उत्पादन 936.2 लाख टन होने का अनुमान है जो दूसरे आरंभिक अनुमान 923 लाख टन से ज्यादा 

अच्छे मानसून से ग्वार की बुवाई को बढ़ावा मिलेगा : कारोबारी

मौजूदा खरीफ सीजन में बेहतर मानसून की संभावना से देश में ग्वार की पैदावार बढऩे के आसार हैं। कारोबारियों का कहना है कि अच्छी बारिश होने से तो ग्वार की पैदावार को बढ़ावा मिलेगा ही, इस साल ग्वार के भाव अच्छे रहने से भी किसानों की दिलचस्पी बढ़ेगी। ग्वार गम की ज्यादातर खपत तेल व गैस उत्खनन में किया जाता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा ग्वार उत्पादक देश है।यहां से दुनिया की 80 फीसदी मांग पूरी होती है। तेल व गैस के उत्खनन के दौरान कुंओं में पानी, बालू और केमिकल को गाढ़ा करने में ग्वार गम उपयोगी होता है। अमेरिका ग्वार गम का सबसे बड़ा आयातक बना हुआ है क्योंकि उसके यहां गैस का उत्खनन तेजी से बढ़ा। वह सबसे बड़े गैस आयातक से उभरता हुआ निर्यातक बनता जार हा है।राजस्थान में देश का 80 फीसदी ग्वार उगाया जाता है। पिछले साल राजस्थान में 20 लाख टन ग्वार का उत्पादन हुआ था। जोधपुर के कारोबारी शिखरचंद डूगर ने बताया कि इस साल ग्वार का रकबा 5 से 10 फीसदी तक बढ़ सकता है। हालांकि अभी पैदावार के बारे में कोई सटीक अनुमान लगाना जल्दबाजी होगा।उन्होंने भरोसा जताया कि इस साल ग्वार का रकबा निश्चित ही बढ़ेगा क्योंकि ग्वार जैसा रिटर्न किसी अन्य फसल में किसानों को नहीं मिल सकता है। ग्वार से किसानों को नकद फसलों जैसे कपास या दलहन के मुकाबले ज्यादा लाभ मिलता है क्योंकि ग्वार की खेती में कम मजदूर लगते है और उर्वरकों की भी कम जरूरत होती है।ग्वार से खेतों की उर्वरता को भी बढ़ावा मिलता है। ग्वार की बुवाई मानसून के सीजन में जून व जुलाई माह में की जाती है। इस साल मानसून की सामान्य बारिश होने की भविष्यवाणी की गई है। केरल में मानसून 3 जून को पहुंचने की संभावना है।सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल जनवरी-अप्रैल के दौरान भारत से 26,842 करोड़ रुपये (4.78 अरब डॉलर) के मूल्य का ग्वार गम निर्यात किया गया। यह आंकड़ा पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा है। इस समय राजस्थान की मंडियों में ग्वार का भाव 8750 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है।एक अन्य कारोबारी सुरेंद्र कुमार यादव के अनुसार इस मूल्य पर भी किसानों को अच्छा लाभ मिल रहा है क्योंकि लागत काफी कम आती है। इंडियाबुल्स कमोडिटीज के एसोसिएट वाइस प्रेसीडेंट बदरुद्दीन खान के मुताबिक ग्वार सीड व ग्वार गम के वायदा कारोबार को अनुमति दिए जाने से भी इसकी खेती को बढ़ावा मिलने की संभावना है।

अमेरिका में जीएम गेहूं के खुलासे से एशिया में हड़कंप

गंभीर मसला - अमेरिका के ओरेगोन में उगाई जा रही है प्रतिबंधित जीएम किस्मखाद्यान्न पर संकट अमेरिका है दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं सप्लायर एशियाई देश खरीदते हैं वैश्विक व्यापार का तिहाई गेहूं कई वर्षों पूर्व मोनसेंटो की विकसित किस्म को मंजूरी नहीं फिर भी ओरेगोन में इस जीएम किस्म की खेती हो रही यूएसडीए इस गेहूं की सप्लाई होने से किया इंकारविस्फोटक खुलासे के बाद जापान ने आयात रोका, फिलीपींस, चीन व दक्षिण कोरिया भी सतर्क रॉयटर्स - सिंगापुर/टोक्यो अमेरिका के जेनेटिकली मॉडीफाइड (जीएम) गेहूं की एक किस्म का खुलासा होने के बाद समूचे एशिया में खलबली मच गई है। जापान ने गुरुवार को अपना गेहूं खरीद टेंडर तुरंत रद्द करने के साथ ही फिलहाल अमेरिकी गेहूं आयात पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है।अमेरिकी सरकार को ओरेगोन राज्य के एक खेत में जीएम गेहूं की फसल मिली है। इसके बाद एशिया के दूसरे प्रमुख आयातक देश दक्षिण कोरिया, चीन और फिलीपींस ने कहा है कि वे पूरे मसले पर कड़ी नजर रखे हुए हैं।अमेरिका ने कहा है कि गेहूं की इस किस्म को बेचने और उपयोग करने की कभी मंजूरी नहीं दी गई। एशिया में उपभोक्ता जीएम फसलों के प्रति काफी संवेदनशील हैं। हालांकि कुछ देशों ने मानव उपयोग के लिए इस तरह के खाद्यान्न का आयात करने की अनुमति दी है। लेकिन अमेरिका से जीएम मक्का व सोयाबीन का ज्यादातर आयात पशु चारे के लिए किया जा रहा है। जापान के कृषि मंत्रालय में गेहूं कारोबार के प्रभारी तोरू हिसडोम ने कहा कि हम गुरुवार से पश्चिमी जगत का सफेद व खाने योग्य गेहूं की खरीद नहीं करेंगे।इससे पहले बुधवार को अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) ने कहा था कि गेहूं की यह किस्म कई वर्ष पहले बायोटैक्नोलॉजी कंपनी मोनसेंटों ने विकसित की थी। पूरी दुनिया में जीएम गेहूं के विरोध को देखते हुए इसका इस्तेमाल कभी शुरू नहीं किया गया। एशिया में हर साल करीब 400 लाख टन गेहूं का आयात किया जाता है। एशिया का कुल आयात वैश्विक कारोबार के मुकाबले करीब एक तिहाई है। पूरी दुनिया में 1400-1500 लाख टन गेहूं का अंतरराष्ट्रीय कारोबार किया जाता है।बड़ी मात्रा में गेहूं की सप्लाई अमेरिका से होती है। दुनिया भर में गेहूं निर्यात में अमेरिका पहले और ऑस्ट्रेलिया दूसरे स्थान पर है। यूएसडीए ने कहा है कि अभी तक जीएम गेहूं आयातक देशों में पहुंचने की जानकारी नहीं है। हालांकि विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि अवांछित गेहूं किस्म मिलने से अमेरिकी गेहूं की विश्व बाजार में मांग प्रभावित हो सकती है।सिंगापुर में स्टेंडर्ड चार्टर्ड बैंक के एनालिस्ट एबे ओफोन ने कहा कि एशियाई उपभोक्ता जीएम गेहूं का उपयोग करने से घबराते हैं। विश्व बाजार में गेहूं की क्वालिटी और सुलभता को लेकर पहले ही दिक्कतें रही हैं। इस मसले से समस्या और बढ़ सकता है। इससे पहले 2006 में अमेरिका के बड़े क्षेत्र में लंबे दाने वाली चावल फसल में बेयर क्रॉपसाइंस की प्रायोगिक नस्ल की मिलावट पाई गई थी।इसके बाद यूरोप और जापान ने इसका आयात रोक दिया था और अमेरिकी चावल का दाम धराशायी हो गए थे। कंपनी ने 2011 में अदालत में उत्पादकों को 75 करोड़ डॉलर हर्जाना देने की रजामंदी दी थी। जीएम गेहूं किस्म पाए जाने का खुलासा होने के बाद चीन के एक फ्लोर मिलर ने कहा कि वह गेहूं आयात में सावधानी बरतेगा। पिछले कुछ महीनों से यह कंपनी बड़े पैमाने पर अमेरिकी गेहूं आयात कर रही थी।यूएसडीए के अनुसार चीन अगले जून तक करीब 35 लाख टन गेहूं आयात कर सकता है। उसके आयात में 21 फीसदी बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया था।इसमें से ज्यादातर गेहूं अमेरिका, कनाडा व ऑस्ट्रेलिया से आना है। उधर, जापान के मंत्री ने कहा कि सरकार ने अमेरिकी अधिकारियों से इसके बारे में और जानकारी मांगी है, जिससे समूचे मामले की विस्तृत जानकारी हो सके। जापान ने फिलहाल गेहूं का आयात बंद कर दिया है।जापान कम से कम तब तक गेहूं का आयात नहीं करेगा, जब तक जीएम नस्ल की जांच करने के लिए टेस्ट किट विकसित नहीं कर लेता है। अमेरिका के पास भी अभी इस तरह की कोई टेस्ट किट उपलब्ध नहीं है।मनीला में फिलीपींस कृषि मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि कोई कदम उठाने से पहले और जानकारी मिलने का इंतजार है। फिलीपींस पूरी तरह अमेरिकी गेहूं पर निर्भर है और हर साल वह 40 लाख टन गेहूं आयात करता है।

शनिवार, 17 मार्च 2012

अकेले किसान ने खोदा तालाब

- शैलेन्द्र सिन्हा

दुमका जिला स्थित जरमुंडी ब्लाक के विशुनपुर-कुरूआ गांव के श्यामल चैधरी आज क्षेत्र के किसानों के लिए आदर्श बन चुके हैं।

दुनिया में इतिहास रचने वालों की कोई कमी नहीं है। कुछ लोग अपना नाम चमकाने के लिए इतिहास रचते हैं तो कुछ लोग निस्वार्थ रूप से अपना कार्य करते हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता है कि उन्होंने इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया है। बिहार के गया जिले के दशरथ मांझी एक ऐसे ही इतिहास रचयिता रहे हैं, जिन्होंने अपनी पत्नी के इलाज में बाधक बने पहाड़ को काटकर सड़क निर्माण किया था। दशरथ मांझी की कहानी आज बिहार की स्कूली किताबों में दर्ज है, जिसका शीर्षक है-पहाड़ से ऊंचा आदमी। ठीक ऐसी ही कहानी है झारखंड के किसान श्यामल चैधरी की है, जिन्होंने अकेले ही अपने अथक प्रयास से तालाब का निर्माण कर डाला और गांव के खेतों के लिए सिंचाई का पानी उपलब्ध करा दिया। दुमका जिला स्थित जरमुंडी ब्लाक के विशुनपुर-कुरूआ गांव के श्यामल चैधरी आज क्षेत्र के किसानों के लिए आदर्श बन चुके हैं। सौ गुणा सौ की लंबाई तथा 22 फीट गहरे इस तालाब को खोदने का काम उन्होंने 14 वर्ष में पूरा कर डाला।

65 वर्षीय इस जुझारू किसान को यह विचार उस समय आया, जब उन्होंने अधिकारियों से अपनी जमीन पर पटवन के लिए एक तालाब की मांग की थी, जो उन्हें नहीं मिला। फिर क्या था, प्रतिदिन दो चैका मिट्टी काटकर अकेले ही तालाब का निर्माण कर दिया। यह काम उन्होंने वर्ष 1997 में शुरू किया था और 2011 में पूर्ण किया। आठवीं पास श्यामल के निर्णय पर शुरू में लोग मजाक उड़ाया करते थे, उन्हें ताना देते थे, ऐसे कई अवसर आए जब उनके हौसले को तोड़ने की कोशिश की गई, कई बार स्वास्थ्य ने भी साथ छोड़ा और वह गंभीर रूप से बीमार हुए लेकिन यह स्वाभिमानी किसान अपनी धुन में लगा रहा, बिना किसी बात की परवाह किये। आखिरकार चुनौती ने भी अपने हथियार डाल दिए और उनके संकल्प की जीत हुई। इस उम्र में जबकि इंसान अपनी सेहत के आगे बेबस होने लगता है, जब उसके हाथ-पैर उसके काबू में नहीं रहते हैं, उसके लिए घर की चारपाई ही एकमात्र सहारा होती है, ऐसी उम्र में श्यामल चैधरी ने तालाब खोदकर नई पीढ़ी को भी संदेश दे दिया। तालाब के पानी का उपयोग वह जहां अपने खेतों में सिंचाई के लिए करते हैं वहीं दूसरों को भी इसका उपयोग करने की इन्होंने इजाजत दे रखी है। आज न सिर्फ विशुनपुर-कुरूआ बल्कि पेटसार, मरगादी, बेलटिकरी और बैगनथरा सहित कई गांवों के किसान उन्हीं के निर्मित तालाब के पानी से सिंचाई कर अपने खेतों को लहलहा रहे हैं।

चैधरी के पास अपनी जमीन है, जिसमें आलू, प्याज, केला और आम के पेड़ लगे हैं। वह स्वयं अपनी फसलों की देखभाल करते हैं। सिंचाई के उपयोग के साथ-साथ वह तालाब में मछली का उत्पादन भी कर रहे हैं, जो उनकी आय का अतिरिक्त स्रोत साबित हो रहा है। श्यामल चौधरी के इस साहसिक कार्य की अब भी सरकारी महकमे में कोई कद्र नहीं है। पटवन के लिए उन्होंने कृषि विभाग से गार्ड वाल और सिंचाई के लिए पंपिग सेट व पाइप की मांग की, जो उन्हें अब तक उपलब्ध नहीं कराया गया है। अधिकारी उनकी सुनते कहां हैं। अफसोस की बात तो वह है कि उन्होंने अपनी पीड़ा जनप्रतिनिधि तक भी पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन वहां भी केवल आश्वासन ही मिला, जिसके पूरा होने का उन्हें अब तक इंतजार है। परंतु इसके बावजूद श्यामल चौधरी अब भी निराश नहीं हुए हैं। दशरथ मांझी की तरह वह भी अपने धुन के पक्के हैं। उन्होंने किसानों को जागरूक करने और उन्हें अपनी क्षमता को अहसास कराने के लिए उनके साथ बैठकें करनी शुरू कर दी हैं, जहां वह किसानों की कृषि समस्या पर बात कर उसके हल का प्रयास करते हैं। श्यामल खुश हैं। आखिर उनका जीवन धन्य हो गया। जो लोग कभी उनके कार्य का मजाक उड़ाया करते थे, आज वही उन्हें श्रद्धा के भाव से देखते हैं। आसपास के गई गांवों के किसान आज उन्हें अपनी प्रेरणा मान रहे हैं। उम्र के आखिरी पड़ाव में भी जमीन का सीना चीरकर तालाब के निर्माण पर वह गर्वान्वित हैं। देर से ही सही सरकार को भी उनके कार्यों के महत्व का अंदाजा हुआ। 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर राज्य के मुख्यमंत्री ने उन्हें राजधानी रांची में सम्मानित किया। हम होंगे कामयाब की तर्ज पर श्यामल ने किसानों को आज एक राह दिखाई है। वास्तव में ऐसे किसान ही समाज के रोल माडल बन सकते हैं

आम बजट: आयकर में राहत, कृषि को तरजीह


शुक्रवार, 16 मार्च, 2012

वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने आर्थिक और वित्तीय चुनौतियों के बीच पेश किए गए बजट में आयकर में छूट देने की घोषणा की है.

इस घोषणा के अनुसार 1.80 लाख रुपए की जगह अब दो लाख रुपए तक की आय पर कर नहीं लगेगा. वित्तमंत्री ने इसके अलावा विभिन्न आय पर लगने वाले कर की सीमा को पुनर्निधारित किया है.

हालांकि इसके साथ ही वित्तमंत्री ने सर्विस टैक्स में दो प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करते हुए इसे 10 से 12 प्रतिशत कर दिया है.

बजट में ग्रामीण इलाक़ों में चल रही परियोजनाओं और कृषि क्षेत्र पर ध्यान दिया गया है और कृषि और सहकारी क्षेत्र में बजट प्रावधान में 18 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करने की घोषणा की गई है.

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वित्तमंत्री ने महंगी कारों और महंगा करने और बीड़ी, सिगरेट और गुटका को महंगा करने की घोषणा की है और एलईडी-एलसीडी टीवी आदि को सस्ता करने की घोषणा की है.

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इसके अलावा सरकार ने काला धन पर श्वेत पत्र जारी करने की घोषणा की है.

आयकर में छूट

हालांकि संसदीय समिति ने आयकर में छूट की सीमा बढ़ाकर तीन लाख करने की सिफ़ारिश की थी लेकिन वित्तमंत्री ने उसे स्वीकार नहीं किया और बजट में छूट की सीमा बीस हज़ार बढ़ाते हुए इसे दो लाख करने की घोषणा की है.

आयकर में छूट

  • 2 से पांच लाख पर- 10 प्रतिशत
  • 5 से 10 लाख पर- 20 प्रतिशत
  • 10 लाख से ऊपर- 30 प्रतिशत

इसके अलावा उन्होंने आय के विभिन्न स्तरों पर कर की सीमा को पुनर्निर्धारित किया है. अब दो लाख से पांच लाख रुपये तक 10 प्रतिशत की दर से आयकर देना होगा, जबकि पांच लाख से 10 लाख पर 20 प्रतिशत और 10 लाख से ऊपर की आमदनी पर 30 प्रतिशत कर चुकाना होगा.

वित्तमंत्री ने कहा है कि 10 लाख तक की आय वाले लोगों के लिए राजीव गांधी इक्विटी योजना शुरू की जाएगी. इस योजना के तहत शेयर बाजार में अधिकतम 50 हजार तक के निवेश पर 50 प्रतिशत तक की छूट मिलेगी.

इस योजना का लॉकिंग पीरियड तीन वर्ष का होगा.

लेकिन इसके साथ ही सरकार ने सर्विस टैक्स में दो प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करने की घोषणा की है और अब यह 10 से बढ़कर 12 प्रतिशत हो गया है.

वित्तमंत्री ने कहा घोषणा की है कि नाकारात्मक सूची में शामिल 17 सेवाओं को छो़ड़कर सभी पर सर्विस टैक्स लगा दिया जाएगा. हालांकि कुछ क्षेत्रों को सर्विस टैक्स से राहत देने की घोषणा की गई है.

उन्होंने कहा है कि सरकार एक्साइज़ टैक्स और सर्विस टैक्स को मिलाने की संभावना पर विचार करेगी.

कृषि पर विशेष ध्यान

सरकार ने कृषि और सहकारिता के क्षेत्र में बजट प्रावधान में 18 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करने की घोषणा की है.

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और पूर्वी भारत में हरित क्रांति की योजनाओं के लिए भी धनराशि बढ़ा दी गई है.

वित्तमंत्री ने कृषि ऋण के लिए आवंटित राशि को वर्ष 2012-13 में एक लाख करोड़ रुपए बढ़ा कर छह लाख 75 हज़ार करोड़ रुपए करने की घोषणा की है.

प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि किसान क्रेडिट कार्ड की योजना में सुधार किया जाएगा और अब इस क्रेडिट कार्ड को स्मार्ट कार्ड में बदल दिया जाएगा, जिससे कि इसका उपयोग एटीएम पर भी हो सके.

उन्होंने उन्होंने ग्रामीण इलाक़ों में पीने के पानी और स्वच्छता के लिए बजट प्रावधान को 11 हज़ार करोड़ से बढ़ाकर 14 हज़ार करोड़ करने की घोषणा की है. इसी तरह प्रधानमंत्री ग्रामीण स्वरोजगार योजना में भी बजट प्रावधान 20 प्रतिशत बढ़ा दिया गया है.

सब्सिडी में कटौती

भारी भरकम सब्सिडी भारत सरकार के लिए चिंता का विषय रही है और बहुत से विशेषज्ञ मानते हैं कि वित्तीय घाटे की एक मुख्य वजह यही रही है.

इस चिंता से निपटने की कोशिश में वित्त मंत्री ने सब्सिडी घटाने पर ज़ोर दिया है. हालांकि उन्होंने कहा है कि कुछ सब्सिडी ग़ैरज़रूरी हैं. उन्होंने सब्सिडी को घटाकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का दो प्रतिशत करने की घोषणा की है.

मिट्टी का तेल यानी केरोसीन, घरेलू गैस यानी एलपीजी और पीडीएस के तहत मिलने वाले अनाज की सब्सिडी सीधे लोगों के बैंक अकाउंट में डालने का जो प्रयोग पिछले साल देश के विभिन्न हिस्सों में शुरु किया गया था, अब उसका विस्तार किया जाएगा.

शिक्षा और स्वास्थ्य

ये दो ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर बजट के दौरान ख़ास नज़रें होती हैं.

शिक्षा के क्षेत्र में वित्तमंत्री ने छात्रों में मिलने वाले ऋण में सुविधा को बढ़ाने के लिए एक क्रेडिट गारंटी फंड की स्थापना की बात कही है.

उन्होंने राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान में आबंटन बढ़ाने और ब्लॉक लेवल पर 6000 आदर्श स्कूलों की स्थापना की घोषणा की है.

इसी तरह स्वास्थ्य के क्षेत्र में पंजीकृत स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के विस्तार की घोषणा की गई है.

उन्होंने कहा है कि प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत सात और मेडिकल कॉलेजों को शामिल करने की घोषणा की गई है.

बुनियादी ढांचागत और औद्योगिक विकास

बजट घोषणा के अनुसार 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान, बुनियादी ढांचे में 50 लाख करोड़ रुपए तक का निवेश होगा और इसमें से आधी राशि निजी क्षेत्रों से मिलने की उम्मीद है.

उन्होंने अपने बजट भाषण में कहा है कि बुनियादी ढांचे में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का समर्थन करने की योजना के तहत अहर्ता प्राप्त क्षेत्रों के तौर पर और क्षेत्र जोड़े गए हैं और रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के ज़रिए संयुक्त उपक्रम वाली कंपनियां बनाने के लिए सरकार ने दिशा-निर्देशों को मंजूरी दी है.

प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि वर्ष 2012-13 में बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं को वित्त मुहैया कराने के लिए 60 हज़ार करोड़ रुपए के कर-मुक्त बांड मंजूर किए जाएंगे.

बुनियादी ढाचांगत क्षेत्रों की एक संतुलित मास्टर सूची बनाई गई है जिसे सरकार ने मंजूरी दी है. (BBC Hindi)

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

कॉटन निर्यात के सौदे 100 लाख गांठ से भी ज्यादा


बाजार का रुख
यार्न मिलों की मांग घटने से पिछले डेढ़ महीने में घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में 7.2 फीसदी की गिरावट आई है। भाव घटने की वजह से उत्पादक मंडियों में कपास की आवक कम हुई है। ऐसे में भारी गिरावट की संभावना नहीं है। उधर, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी कॉटन की कीमतों में 8.4 फीसदी की गिरावट आई है।

89.86 सेंट प्रति पाउंड भाव है न्यूयॉर्क में कॉटन का
34,700 रुपये प्रति कैंडी पर अहमदाबाद में बिक रही है कॉटन
88.50 लाख गांठ कॉटन का निर्यात हुआ था वर्ष 2007-08 में विश्व बाजार में भारतीय कॉटन सस्ती होने से बढ़ रहा है निर्यात

अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय कॉटन सस्ती होने के कारण यूरोप, चीन, टर्की और बांग्लादेश की मांग बढ़ गई है। इससे चालू सीजन में 102 लाख गांठ (एक गांठ 170 किलो) कॉटन के रिकॉर्ड निर्यात सौदे हो चुके है। इससे पहले वर्ष 2007-08 में 88.50 लाख गांठ का निर्यात हुआ था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉटन का भाव 89.86 सेंट प्रति पाउंड है जबकि घरेलू बाजार में अहमदाबाद मंडी में शंकर-6 किस्म की कॉटन का भाव 34,500 से 34,700 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी 356 किलो) है।


कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (सीसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मध्य फरवरी तक 102 लाख गांठ कॉटन के निर्यात सौदे हो चुके है जो एक रिकॉर्ड है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय कॉटन सस्ती होने के कारण निर्यात में बढ़ोतरी हो रही है। उन्होंने बताया कि चालू सीजन 2011-12 के दौरान 84 लाख गांठ कॉटन का निर्यात होने का अनुमान था।


केसीटी एंड एसोसिएट्स के मैनेजिंग डायरेक्टर राकेश राठी ने बताया कि यार्न मिलों की मांग घटने से पिछले डेढ़ महीने में घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में 7.2 फीसदी की गिरावट आई है। अहमदाबाद मंडी में गुरुवार को शंकर-6 किस्म की कॉटन का भाव घटकर 34,500 से 34,700 रुपये प्रति कैंडी रह गया।


18 जनवरी को इसका भाव 37,200 से 37,500 रुपये प्रति कैंडी था। उधर, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इस दौरान इसकी कीमतों में 8.4 फीसदी की गिरावट आई है। 17 जनवरी को न्यूयॉर्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में मार्च महीने के वायदा अनुबंध में कॉटन का भाव 98.19 सेंट प्रति पाउंड था जबकि 29 फरवरी को इसका भाव 89.86 सेंट प्रति पाउंड पर बंद हुआ।


कॉटन के थोक कारोबारी एम. बी. शाह ने बताया कि उत्पादक मंडियों में दाम घटने से कपास की आवक कम हुई है। पिछले सप्ताह तक दैनिक आवक लगभग सवा लाख गांठ से ज्यादा की हो रही थी जबकि चालू सप्ताह में आवक घटकर एक लाख गांठ के करीब रह गई है।


ऐसे में मौजूदा कीमतों में भारी गिरावट की संभावना नहीं है। कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार कॉटन का उत्पादन बढ़कर 340.87 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2010-11 में उत्पादन 330 लाख गांठ का हुआ था